PM मोदी के 'स्वदेशी' मंत्र को महाराष्ट्र के मंत्री ने दिखाया ठेंगा !


जतिन दाधीच / मीरा भाईंदर : महाराष्ट्र के परिवहन मंत्री प्रताप सरनाईक ने हाल ही में अमेरिकी कंपनी टेस्ला की इलेक्ट्रिक कार खरीदकर एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'आत्मनिर्भर भारत' और 'वोकल फॉर लोकल' का नारा दे रहे हैं, और स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने पर लगातार जोर दे रहे हैं। सरनाईक ने जो टेस्ला मॉडल वाई कार खरीदी है, वह भारत में टेस्ला की पहली आधिकारिक डिलीवरी है, जिसकी कीमत (ऑन-रोड) लगभग ₹60 लाख से 70 लाख रुपये तक है।

क्या मंत्री जी 'स्वदेशी' की परिभाषा भूल गए?

प्रधानमंत्री मोदी ने 'स्वदेशी' की अपनी परिभाषा को बहुत सरल और स्पष्ट किया था। उन्होंने कहा था कि "पैसा किसी का भी हो, पसीना भारतीय का होना चाहिए," जिसका मतलब है कि भारत में बनी हुई चीजें, भले ही उनका उत्पादन विदेशी कंपनियों द्वारा किया गया हो, स्वदेशी हैं। इस परिभाषा के अनुसार, टेस्ला की कार, जो अमेरिका में बनी है और सीधे आयात की गई है, इस दायरे में नहीं आती। इसके विपरीत, मारुति सुजुकी जैसी कंपनियां, जो भारत में ही इलेक्ट्रिक कारें बना रही हैं, प्रधानमंत्री की परिभाषा के अनुसार पूरी तरह से 'स्वदेशी' हैं।

एक तरफ, प्रधानमंत्री गुजरात में भारतीय कर्मचारियों द्वारा बनाई गई मारुति सुजुकी की इलेक्ट्रिक कार 'ई-विटारा' को हरी झंडी दिखाते हैं, और दूसरी तरफ, उन्हीं की सरकार के एक मंत्री एक आयातित, विदेशी कार खरीदकर उस संदेश को कमजोर करते हैं। यह न सिर्फ सरकार की नीतियों के प्रति एक विरोधाभास है, बल्कि उन भारतीय कंपनियों और श्रमिकों के मनोबल को भी तोड़ता है जो देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।

जागरूकता फैलाने का बहाना ?

प्रताप सरनाईक ने अपनी टेस्ला खरीद को "इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के प्रति जागरूकता फैलाने" और अपने पोते को "हरित गतिशीलता" (green mobility) का महत्व समझाने का एक प्रयास बताया है। यह तर्क बहुत खोखला लगता है। अगर उनका उद्देश्य वास्तव में जागरूकता फैलाना होता, तो वह एक भारतीय निर्मित इलेक्ट्रिक कार खरीदकर एक बेहतर उदाहरण प्रस्तुत कर सकते थे। क्या भारतीय ईवी जागरूकता फैलाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं? क्या भारत में बनी इलेक्ट्रिक गाड़ियों में उतनी क्षमता और सुरक्षा नहीं है जितनी एक टेस्ला में?

'आत्मनिर्भर भारत' अभियान पर सवाल 

सरनाईक का यह कदम एक नकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करता है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या सरकारी नीतियां केवल भाषणों तक ही सीमित हैं, या वास्तव में उनका पालन भी किया जाता है। जब देश के नेता ही विदेशी उत्पादों को प्राथमिकता देंगे, तो आम जनता से "वोकल फॉर लोकल" बनने की उम्मीद कैसे की जा सकती है? यह कदम दिखाता है कि मंत्री जी ने 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान को गंभीरता से नहीं लिया है, और उनकी प्राथमिकताएं सरकार की नीतियों से मेल नहीं खाती हैं। यह एक ऐसा उदाहरण है जो सरकार की 'स्वदेशी' पहल को कमजोर करता है और भारतीय उद्योग के प्रति अविश्वास पैदा करता है।

"महाराष्ट्र के परिवहन मंत्री ने यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ को लेकर तनाव चरम पर है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत से आयात होने वाले सामानों पर 50% तक टैरिफ बढ़ा दिया है, जिसका सीधा असर भारतीय निर्यातकों पर पड़ रहा है। दूसरी तरफ, भारत भी अपने घरेलू उद्योगों को बचाने के लिए जवाबी कदम उठा रहा है। ऐसे माहौल में, एक भारतीय मंत्री का विदेशी कार खरीदना न केवल सरकार की नीतियों के खिलाफ है, बल्कि यह एक गलत संदेश भी देता है। "

- संदीप राणे, शहर अध्यक्ष (मीरा भाईंदर), महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना